गाजीपुर । जनपद के बाराचवर स्थित शिव मंदिर पोखरे पर चल रहे भागवत कथा में अयोध्या से पधारे शिवराम दास उर्फ़ फलाहारी बाबा ने कहा कि जो पवित्र ना हो अविद्या हो आसक्ति हो उसी का नाम पुतना है। जिसका विचार कृष्णा नहीं कंस से मिलता हो। जो कंस के प्रेरणा से प्रेरित होकर व्यवहार करती हो उसी का नाम पुतना है। अविद्या रूपी पुतना को देखकर भगवान कृष्ण ने आंखें बंद कर ली। नेत्र सबको नहीं दिया जाता है। पुतना के जलने पर एक दिव्य प्रकार का सुगंध आया ईश्वर जिसको स्पर्श कर दे उसके जीवन के सारे दुर्गंध समाप्त हो जाते हैं। गीता के अनुसार ज्ञान जैसा पवित्र कोई चीज नहीं है किंतु ज्ञान जब व्यवहार में उतरता है तो और शोभायमान हो जाता है। व्याख्याएं पराई होती है व्यवहार और अनुभव ही अपना होता है। प्राय: व्यक्ति का जीवन खाओ पियो मौज करो तक ही सीमित होकर रह गया है। यदि जीवन भगवान को समर्पित हो जाए तो भोग भी प्रसादिक बन जाता है। भोजन करने के पहले भगवान को अर्पित करके प्रसाद बनाकर यदि पाया जाए तो बुद्धि दुर्बुद्धि नहीं सद्बुद्धि हो जाती है। इच्छा को मारना नहीं मोड़ना है। संसार की इच्छा को भगवद् इच्छा में रूपांतरित करना ही पुरुष का पुरुषार्थ है। भगवान कृष्ण के जीवन में पांच नियम थे 11 वर्ष तक बाल नहीं कटाऊंगा शीला वस्त्र नहीं पहनुंगा शस्त्र नहीं उठाऊंगा चप्पल जूता नहीं पहनूंगा और ब्रज के बाहर नहीं जाऊंगा। भगवान सतयुग में शुक्ल वर्ण में त्रेता में रक्त वर्ण तथा द्वापर में श्याम वर्ण में धरा धाम पर आतें हैं।गोपी पिबति भक्ति रसम् इति गोपी:। जो भक्ति रस का पान करती है उसी का नाम गोपी है। इंद्रियों के समूह को ही गोकुल कहते हैं। गोपायति श्रीकृष्णं स्व हृदय या सा गोपी:। जो कृष्ण को हृदय में छुपा कर रखती हो उसी का नाम गोपी है। कृष्ण का अवतार गाय गोपी और गीता के लिए ही हुआ।