गाजीपुर । नगर के खुदाईपुरा, नक्खास में इमामबाड़ा मीर अली हुसैन साहब मरहूम में हर साल की तरह इस साल भी हजरत अली की शहादत दिवस पे मजलिस का आयोजन सुबह 10 बजे से शुरू हुआ पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार हुआ।पहली मजलिस में सोजख़्वानी श्री जफरुल हसन और उनके साथियों ने किया जिसके बाद पेशख्वानी में जनाब नादे अली, एलिया गाजीपुरी, सीमाब गाजीपुरी, वाहिद गाजीपुरी, ने अपने कलाम पेश किए।इसके बाद मोहम्मदाबाद गोहना से आए हुए मौलाना सैयद हुसैन जाफर ने मजलिस पढ़ते हुए हजरत अली की शहादत के सिलसिले से बातें बताई जिसमे मौलाना बताते हैं कि हजरत अली के ऊपर मस्जिद में होने वाला हमला इस्लामिक दुनिया का पहला आतंकी हमला था जिसमे एक मुसलमान ने ही अपने समय के ख़लीफा को हालत ए नमाज़ में शहीद कर दिया।मौलाना आगे बताते हैं कि आज पूरी दुनिया में कहीं भी मस्जिदों में बम धमाके या नमाजियों या फिर किसी भी धार्मिक स्थल पर आतंकी हमला हो तो आप ये समझ जाइए की उस विचारधारा के लोग आज भी जिंदा है जिन्होंने आज से 1400 साल पहले हजरत अली को हालत ए नमाज़ में शहीद किया था।मौलाना आगे बताते हैं कि हजरत अली जब अपने अंतिम समय से गुजर रहे थे तो अपने बड़े बेटे हसन को पास बुला के वसीयत किया कि हमेशा यतीम (अनाथो) का ध्यान रखना तथा गरीबों की मदद करने से पीछे न हटना।हजरत अली अपनी पूरी जिंदगी रात के अंधेरे में अपनी पीठ पर अनाज लेकर गरीबों के दरवाजे जाया करते थे और उनकी मदद इस अंदाज से करते थे की मदद पाने वाला व्यक्ति उनका चेहरा न देख पाए।
मौलाना बताते हैं कि हजरत अली ऐसा करके ये बताना चाहते थे कि जिस किसी ज़रूरतमंद की मदद करो तो उससे आंखें न मिलाओ अन्यथा ये संभव है कि मदद लेने वाला व्यक्ति आत्मग्लानि से मर जाए।वो हर रात अनाथों के बीच जा के समय गुजारते और खुद को भी अनाथ बताते और कहते की जिसका इस दुनिया में कोई नही उसका भगवान या खुदा होता है।दूसरी मजलिस का आयोजन ठीक 1 बजे दिन में हुआ जिसमे सबसे पहले सेराज अली जंगीपुर ने अपने विशेष अंदाज़ में सोज़ख़्वानी पेश किया पेशखवानी जनाब कायम हुसैनपुरी ने किया मजलिस को मौलाना उरुजुल हसन मीसम साहब लखनऊ ने पढ़ा जिसमे मौलाना बताते हैं कि हजरत अली के ज्ञान से तत्कालीन लोगों ने कोई फ़ायदा नहीं उठाया जबकि अली कहते रह गए की पूछो मुझसे जो पूछना है इससे पहले कि मैं तुम्हारे बीच न रहूं लेकिन ये अक्ल के दुश्मन मुसलमानो ने हजरत अली से ज़रा सा भी ज्ञान हासिल नहीं किया ।मौलाना बताते हैं कि हजरत अली ज़मीन से ज़्यादा आसमान के बारे में ज्ञान रखते थे अगर इस वक्त के मुसलमान ऐसे ज्ञानी के ज्ञान से फायदा उठाते तो आज दुनिया में मुसलमानों को ये हालत न होती।मौलाना बताते हैं कि हजरत अली के दिए हुए उपदेशों और कही गई बातों को जिस किताब में इकठ्ठा किया गया उसका नाम है ‘ नहजुल बलागा ‘ इस किताब को मोक्ष की किताब भी कहा जाता है और आज भी इनकी किताब पे बहुत सारे लोग रिसर्च का काम कर रहे हैं, लेकिन मुस्लमान आज भी इनके नाम से दुश्मनी निकाल के इनके मानने वालों को बेगुनाह मौत के घाट उतार रहें हैं।जिन मुसलमानों को उनके आखिरी नबी ने उनके असली उत्तराधिकारी की पहचान अपनी ज़िंदगी में ही करा दी उन बदकिस्मत मुसलमानो ने उनके मरने के बाद किसी दूसरे को अपना खलीफा मान लिया। ऐसे मुसलमान ही पूरी दुनिया में आज रुसवा हो रहें हैं जिन्होंने अपने नबी की नहीं मानी जबकि अपने नबी को खूब मानते हैं।मजलिस के बाद शबीह ए ताबूत बरामद हुई जिसमे नोहाख्वानी बादशाह राही ने किया, उनका नोहा सुन के सबकी आंखें भर आईं।कत्ल हुए रोजेदार हाए जनाब ए अमीर को सदा को अंजुमन मोहम्मदीया मोहम्मदपुर के सदस्य दोहराते रहे।रास्ते की तकरीर (उपदेश) में सर्वप्रथम मैलाना सैयद इरफान हैदर साहब ने हजरत अली के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनके साथ हुए जुल्म को बताया और कहा कि इसी अली के बेटे हुसैन को कर्बला में भी शहीद कर दिया गया था जिसके विरोध में हर साल मोहर्रम मानते हैं।दूसरी तकरीर बनारस के के मौलाना वसीम रज़ा रिज़वी ने किया जिसमे मौलाना बताते हैं कि ये हजरत अली वो व्यक्ति थे जिनके पूरे परिवार को शहादत का दर्जा प्राप्त है और इनके परिवार के हर सदस्य को बेगुनाह मारा गया जिसमे इनकी पत्नी जनाब e फातिमा हो या बड़े बेटे हसन, छोटे बेटे हुसैन या स्वयं हजरत अली ही क्यों न हो!इनके पोते इमाम बाकर और जाफर ने विश्वविद्यालय की स्थापना की और लोगो को ज्ञान की तरफ ले गए।तीसरी तकरीर गोपालपुर बिहार के मौलाना सैयद हैदर अब्बास साहब ने किया जिसमे वो बताते हैं कि हजरत अली ने कहा कि अगर कोई इंसान रोटी की चोरी करते पकड़ा जाए तो इस चोर के हाथ न काटो बल्कि इस बादशाह के हाथ काटो जो इनपर हुकूमत करता है क्योंकि कोई अगर रोटी चुराता है तो ये उसकी गलती नही बल्कि इस क्षेत्र के बादशाह की गलती मानी जाएगी जिसकी हुकूमत में लोग रोटी चोरी करने पे मजबूर हुआ।जुलूस अपने तयशुदा रास्तों नक्खास तिराहा, सनबाजार, छ्वलका इनार पहुंचा जहां चौथी तकरीर लखनऊ से आए प्रसिद्ध वक्ता ज़ीशान आज़मी ने हजरत अली के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हजरत मोहम्मद साहब ने आपको इल्म (ज्ञान) के शहर का द्वार बताया जिससे हर वो व्यक्ति ज्ञान हासिल कर सकता है जो ज्ञानी बनना चाहता है ओर दुनिया में कामयाब होना चाहता है। हम इनका जुलूस ए ताबूत लेके निकलते है और दुनिया को बताते है कि इतने बड़े ज्ञानी पुरुष को भी लोगो ने षड्यंत्र रचा के मौत के घाट उतार दिया।छवलका ईनार से आगे बढ़ के जुलूस स्टीमर घाट (क़ाज़ीटोला) स्थित इमामबाड़ा हाजी सैयाद्य विलायत अली साहब में पहुंचा जहां आखिरी तकरीर मौलाना जाबिर अली जंगीपुरी ने किया और बताया कि हजरत अली को अब्दुल रहमान इब्ने मुल्जिम ने ऐसे जहर से बुझी तलवार से शहीद किया था जिसके एक बूंद से पूरे कुफा शहर के लोगो को मारा जा सकता था क्युकी वो जहर इतना ताकतवर था की उसकी एक बूंद भी अगर पानी में डाल दी जाती तो पूरा पानी जहरीला हो जाता ।ऐसे ज़ालिम लोगो ने मौला को शहीद किया जिनके खिलाफ हम आज भी 1400 साल से ये जुलूस उठा के उनका विरोध दर्ज कराते हैं की हम मजलूम के मानने वाले वाले हैं ज़ालिम के नही।जुलूस में पूरे समय प्रशासन की उपस्थिति दिखी और साथ ही साथ नगर के अलावा ग्रामीण क्षेत्र से भी लोग इस कार्यक्रम में शामिल हुए।जुलूस में आए हुए सभी लोगो का तथा प्रशासन का अंत में जुलूस के संयोजक एवं आयोजक साकिब आब्दी ने धन्यवाद दिया।
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