गाजीपुर को वीर सपूतों की जन्मस्थली माना जाता है। जिले में एक ऐसा गांव भी है, जिसको ‘फौजियों का गांव’ के नाम से जाना जाता है। इस गांव के सैनिकों पर इनकी कुलदेवी मां कामाख्या देवी की विशेष कृपा है, जिसकी वजह से इस गांव का कोई भी जवान आज तक किसी भी युद्ध में शहीद नहीं हुआ है. जवानों का कहना है कि युद्ध के समय मां कामाख्या देवी बंकरों की स्वयं उनकी रक्षा करती हैं।
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले की पहचान वीर सपूतों की जन्मस्थली और कर्मस्थली के रूप में है। यहां के वीर सपूतों को परमवीर चक्र से लेकर महावीर चक्र और वीर चक्र तक से नवाजा गया है। ये वीर सपूत अपने प्राणों की आहुति देकर मां भारती की रक्षा करने के लिए सदैव आगे रहते हैं। बात गहमर गांव की बात करें तो यहां के निवासियों पर कुलदेवी की विशेष कृपा रहती है। शायद यही कारण है कि यहां के वीर सपूत मां भारती की रक्षा करने के लिए सेना में सेवा देने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। आज तक जितनी भी जंग हुई हैं, उन सभी जंगों में इस गांव के वीर सपूतों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, लेकिन इस गांव के वीर सपूत जंग के दौरान कभी शहीद नहीं हुए।
गहमर गांव की बात करें तो यह गांव एशिया के सबसे बड़े गांव में शुमार है। यहां के प्रत्येक परिवार से औसत एक व्यक्ति सेना में मौजूदा समय में है या फिर रिटायर होकर घर पर खेती या अन्य कार्य कर रहा है। इस गांव से सेना में सिपाही से लेकर कर्नल रैंक तक के अधिकारी हैं। इस गांव में सिकरवार वंश के लोग रहते हैं, जो 1526 में फतेहपुर सीकरी से चलकर गाजीपुर पहुंचे थे। इस स्थान पर पहले बंजारों का राज हुआ करता था। बंजारे लोग जंगलों को काटकर अपने रहने का स्थान बनाया करते थे, फिर यही के होकर रह गए।
मां कामाख्या करती हैं बंकरों की रक्षा-
इस स्थान पर जब सिकरवार वंश के लोग आए तो उन्होंने देखा कि यहां पर चूहे-बिल्ली दौड़ रहे थे। फिर उन लोगों ने यहीं पर रहने का निश्चय कर लिया। यहीं के सकराडीह स्थान पर अपनी कुलदेवी मां कामाख्या की स्थापना की। यहां रहने वाले लोगों की मान्यता है कि कुलदेवी मां कामाख्या सदैव लोगों की रक्षा करती हैं। यहां तक कि जब वह जंग के मैदान में जाते हैं तो जंग के दौरान मां कामाख्या इन सभी लोगों के बंकर के आसपास रहकर इन सभी लोगों की रक्षा करती रहती हैं।
नहीं हुआ कोई भी शहीद-
शायद यही कारण है कि प्रथम विश्व युद्ध में गहमर गांव के 28 लोगों गए थे, जिसमें से 21 लोग शहीद हुए, लेकिन इस प्रथम विश्व युद्ध के बाद से ही मां कामाख्या का विशेष ध्यान अपने लोगों पर हुआ। इसके बाद से लेकर अब तक चाहे जितनी भी जंग हुई हो, सभी जंग में गहमर गांव के वीर सपूतों की मां भारती रक्षा करती आई हैं, लेकिन आज तक कोई भी शहीद नहीं हुआ। चाहे वह जंग 1965 की हो, 1971 की हो, भारत-बांग्लादेश-चीन, कारगिल युद्ध हो किसी भी युद्ध में आज तक गहमर गांव का जवान शहीद नहीं हुआ।
लोगों पर हैं मां कामाख्या की कृपा-
पूर्व सैनिक सेवा समिति के अध्यक्ष मारकंडेय सिंह जो 1971 की जंग में स्वयं शामिल थे। उन्होंने बताया कि जंग चल रही थी और वह लोग अपनी टुकड़ी के साथ एक बंकर में छिपे हुए थे। रात के समय इन लोगों ने देखा कि आसमान में सफेद साड़ी पहने कोई महिला इनके बंकरों के आसपास घूम रही है और कह रही है कि तुम लोग बेफिक्र होकर जंग लड़ो, तुम्हारा कुछ भी नहीं होगा। उसके बाद हम सभी लोगों ने जंग में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और उस जंग को जीत लिया. उन्होंने बताया कि हमारी कुलदेवी मां कामाख्या का कृपा यहां के लोगों पर हमेशा बनी रहती है।
ड्यूटी से लौटने के बाद करते हैं मां के दर्शन-
यही कारण है कि जब भी कोई भी जवान ड्यूटी से घर आता है तो वह सबसे पहले मां कामाख्या के मंदिर में दर्शन कर आशीर्वाद लेकर ही घर जाता है। जब वापस ड्यूटी पर जाता है, तब भी मां कामाख्या का आशीर्वाद लेकर रेलवे स्टेशन जाता है। यह गांव के सभी वीर सपूतों और रिटायर सैनिकों की दिनचर्या में शामिल है।