गणेश चतुर्थी का उत्सव देशभर में धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. इस शुभ समय पर सभी लोग बप्पा के दर्शन और पूजन करते हैं. लेकिन इसके साथ ही गणेश जी परिक्रमा भी जरूप करें.
गणेश जी का आगमन हो चुका है, इस समय बप्पा के दर्शन के लिए लोग मंदिरों और पंडालों में लंबी कतारें लगाते हुए दिखेंगे. हम दर्शन तो कर लेते है लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण बात उस पर दृष्टि नहीं डालते, वह है ‘परिक्रमा.
गणेश चतुर्थी का पर्व हिंदू धर्म में बहुत खास होता है. इसे पर्व के साथ ही पूरे 10 दिनों तक उत्सव के रूप में मनाया जाता है और फिर बप्पा का विसर्जन किया जाता है. इस वर्ष गणेश चतुर्थी का आरंभ 7 सितंबर से हो रहा है और 17 सितंबर को गणेश विसर्जन किया जाएगा.
10 दिवसीय गणेशोत्सव में भक्त बप्पा के दर्शन और पूजन करते हैं. इसके लिए सभी पंडालों और मंदिरों में पहुंचते हैं. लेकिन आमतौर पर हम गणेश जी की परिक्रमा पर ध्यान नहीं देते, जोकि सबसे महत्वपूर्ण है.
प्राचीन सनातन धर्म में परिक्रमा करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है. आप जब गणपति के दर्शन को जाए तो परिक्रमा करना ना भूले. लेकिन प्रश्न यह उठता है कि भगवान गणेश की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए. इसका उत्तर शास्त्रों में वर्णित है, चालिए शास्त्रों (Shastra) के प्रमाणों को खंगालते हैं.
“बह्वच परिशिष्ट” के अनुसार गणेशजी की एक परिक्रमा करनी चाहिये-
‘एकां विनायके कुर्यात्’
अर्थ:-भगवान विनायक की एक बार परिक्रमा करनी चाहिए.
किंतु “ग्रन्थान्तर” के अनुसार-
‘तिस्त्रः कार्या विनायके ॥’
इस वचन के अनुसार तीन परिक्रमाओं का विकल्प भी आदरणीय है.
नारदपुराण (पूर्वार्ध अध्याय क्रमांक 13) में भी तीन बार परिक्रमा करने का वर्णन है –
’तिस्रो विनायकस्यापि’
अर्थ:- भगवान विनायक की तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए.
देखा जाए तो तीन परिक्रमा पे अधिक बल दिया गया है, क्योंकि तीन परिक्रमा का वर्णन अधिक बार आया है. अगर समय का अभाव है या कोई अन्य कारणों से तीन परिक्रमा ना हो पाएं तो एक परिक्रमा भी की जा सकती है.