गाजीपुर । भांवरकोल क्षेत्र के श्रीपुर गांव स्थित आयोजित सात दिवसीय श्री मद्भागवत कथा के तीसरे दिन आचार्य पंडित प्रताप जी ने भक्त प्रहलाद चरित्र, भरत चरित्र, पृथु चरित्र व हिरण्यकश्यप वध, नरसिंह अवतार व समुद्र मंथन का वर्णन किया। कथावाचक ने व्याख्यान करते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत कथा का केंद्र है आनंद। आनंद की तल्लीनता में पाप का स्पर्श भी नहीं हो पाता। भागवत कथा एक ऐसा अमृत है कि इसका जितना भी पान किया जाए मन तृप्त नहीं होता है। उन्होंने कहा कि हिरण्यकश्यप नामक दैत्य ने घोर तप किया। तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए व कहा कि मांगों जो मांगना है। यह सुनकर हिरण्याक्ष ने अपनी आंखें खोली। और ब्रह्माजी को अपने समक्ष खड़ा देखकर कहा-प्रभु मुझे केवल यही वर चाहिए कि मैं न दिन में मरूं, न रात को, न अंदर, न बाहर, न कोई हथियार काट सके, न आग जला सके, न ही मैं पानी में डूबकर मरूं, सदैव जीवित रहूं। उन्होंने उसे वरदान दिया। हिरणकश्यप के पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे। हिरण्यकश्यप भागवत विष्णु को शत्रु मानते थे। उन्होंने अपने पुत्र को मारने के लिए तलवार उठाया था कि खंभा फट गया उस खंभे में से विष्णु भगवान नरसिंह का रूप धारण करके जिसका मुख शेर का व धड़ मनुष्य का था। प्रगट हुए भगवान नरसिंह अत्याचारी दैत्य हिरण्याक्ष को पकड़ कर उदर चीर कर वध किया। इस धार्मिक प्रसंग को आत्मसात करने के लिए भक्त देर तक भक्ति के सागर में गोते लगाते रहे। भगवान की भक्ति में ही शक्ति है। उन्होंने कहा कि सभी अपने बच्चों को संस्कार अवश्य दें, जिससे वह बुढ़ापे में अपने माता पिता की सेवा कर सकें, गो सेवा, साधु की सेवा कर सकें। इस दौरान मुख्य यजमान कालिका राय, शैलेश राय, सोनू राय, मोनू राय, रामावधेश राय, उमेश राय, लक्ष्मण राय, अशोक राय, सत्यम राय, पिंटू शर्मा, कमलेश राय, ओंकारनाथ राय व आदि ग्रामवासी मौजूद रहे।