आधुनिकता की चकाचौंध में गुम हो रही परंपरागत होली

Sonu sharma

गाजीपुर । बदलते जमाने के साथ-साथ लोगों का रहन-सहन खान काफी बदल चुका है। उनकी सभ्यता व संस्कृति में भी काफी बदलाव आ चुका है। यही कारण है कि पश्चात संस्कृति के प्रभाव के चलते पुरानी पारंपरिक त्यौहारों का स्वरूप बदलता जा रहा है। हिंदुओं के त्योहारों में होली को प्रमुख पर्व माना जाता है। किंतु यह भी आधुनिकता की चकाचौंध और पाश्चात्य सभ्यता और के साथ ही फूहड़पन के आगे इसका रंग फीका पड़ता जा रहा है। पहले मनाए जाने वाली होली और आज के समय में मनाई जा रही होली में काफी फर्क आ गया है। होली का त्यौहार का नाम आते ही सबकी बांछें खिल उठती थी । इसके रंग आगे जात-पात, ऊंची नीच, धर्म संप्रदाय के अलावा पीढि़यों की दूरियां तक मिट जाया करती थी।यह बातें गांव में सुनने को मिलती थीं। परन्तु आज के परिदृश्य में इसकी छाप दूर-दूर तक देखने को नहीं मिल रही है। होली का होली का स्तर दिनों दिन गिरता जा रहा है। होली अब भंग की तरंग में नहीं बल्कि शराब की नशे में मनाए जाने लगी है ।यह परंपरा बहुत पुरानी नहीं है। लेकिन इन दोनों समाज में जोर पकड़े हुए हैं। इसके चलते कई घटनाएं भी घट जाती है। आधुनिक सभ्य समाज की देन शराब ने पिछले एक दशक से पारंपरिक त्यौहारों में अपने गहरी पैठ बना ली है ।अच्छे खासे से लेकर रेकिया उठान वाले युवा अब छककर सेवन करते हैं। पहले के समय में जहां बसंत पंचमी से ही गांव में समूह बनाकर लोग पारंपरिक होली गीत को गाकर होली गायन की शुरुआत कर देते थे। होली के दिन देर रात तक की कार्यक्रम चलता रहता था। समूह में लोग ढोलक की थाप पर फाग गीत गाकर मन मस्त होकर झूम उठते थे। अब यह परम्परा धीरे-धीरे सिमटने सी लगी है। इसका दायरा काफी संक्षिप्त हो चुका है। अब धूम धड़ाके, शोर शराबे तेज धमक वाले डीजे को लोग ज्यादा पसंद करने लगे हैं। इसका संबंध आपसी संबंधों पर भी पड़ा है। भाईचारगी व आपसी सौहार्द्र की प्रतीक इस होली त्यौहार के आकर्षण में मनमुटाव झलकने लगा है। अब कदाचित गांव में ही बसंत पंचमी के बाद होली के परम्परागत गीत सुनने को मिलते हैं। रंगों में सराबोर होने के बाद यहां तक की होली के दिन दोपहर बाद अबीर गुलाल के बाद लोग समूहों में मनोरा, झूमर, फाग, रसिया,चहका आदि गंवई गीतों के साथ सबके दरवाजे पर पहुंच प्रेम और सौहार्द, भाईचारे का संदेश पहुंचाने वाली टोलिया अब कुछ ही गांवों में रह गई है। हर्बल रंगों की जगह अब सिंथेटिक और रसायन से निर्मित रंगों और फूहड़पन ने ले ली है।

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