गायत्री महायज्ञ में उमड़ रहा श्रद्धालुओं का जत्था, उत्साह के साथ समर्पित कर रहे हैं आहुति

Sonu sharma

गाजीपुर । नगर के श्री चित्रगुप्त मंदिर प्रांगण में चल रहे 51 कुंडीय गायत्री महायज्ञ के चौथे दिन प्रातः 8:00 बजे से ही श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो गया। सभी कुंडों पर पति-पत्नी मुख्य यजमान के रूप में पारंपरिक वेशभूषा- धोती कुर्ता व साड़ी परिधान में बैठकर वैदिक मंत्रोच्चार से षट्कर्म किया। यज्ञ के दौरान निशुल्क संस्कार संपन्न कराए गए। कई विद्यालय के बच्चों का विद्यारंभ संस्कार कराया गया। माता के गर्भ में पल रहे बच्चों का पुंसवन संस्कार, 5 वर्ष के ऊपर के बच्चों का मुंडन संस्कार व 18 वर्ष के ऊपर तथा गृहस्थ जीवन जी रहे पति-पत्नी का दीक्षा संस्कार कराया गया। तत्पश्चात श्रद्धालुओं ने पूर्ण मनोयोग से यज्ञ में आहुतियां समर्पित किया। यज्ञ और गायत्री के संबंध की विशेषता के बारे में बताते हुए शांतिकुंज हरिद्वार के केंद्रीय टोली नायक राजकुमार भृगु ने कहा कि गायत्री को माता और यज्ञ को पिता माना गया है। इन्हीं दोनों के संजोग से मनुष्य का जन्म होता है जिसे द्विजत्व कहते हैं। धर्म ग्रंथो में तो पग- पग पर यज्ञ की महिमा का गान है। वेद में यज्ञ का विषय प्रधान है क्योंकि यज्ञ एक ऐसा विज्ञानमय विधान है, जिससे मनुष्य का भौतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से कल्याणकारक उत्कर्ष होता है। यज्ञ में जो कुछ धन ,सामग्री, श्रम लगाया जाता है वह कभी निरर्थक नहीं जाता। एक प्रकार से वह देवताओं के बैंक में जमा हो जाता है और उचित अवसर पर संतोषजनक ब्याज समेत वापस मिल जाता है। पूर्व काल में यज्ञ के द्वारा मनोवांछित वर्षा होती थी। योद्धा लोग युद्ध में विजय श्री प्राप्त करते थे और योगी आत्म साक्षात्कार करते थे। इसलिए आज हर मनुष्य को यज्ञ से जुड़ने की आवश्यकता है। इस मौके पर मुख्य प्रबंध ट्रस्टी सुरेंद्र सिंह ने कहा कि यज्ञ का अर्थ- दान, एकता, उपासना से है। यज्ञ का वेदोक्त आयोजन शक्तिशाली मंत्रों का विधिवत् उच्चारण, विधिपूर्वक बनाए हुए कुंड, शास्त्रोक्त समिधाएं तथा सामग्रियां जब विधान पूर्वक हवन की जाती है तो उनका दिव्य प्रभाव विस्तृत आकाश मंडल में फैल जाता है। उसके प्रभाव के फलस्वरूप प्रजा के अंतःकरण में प्रेम, एकता, सहयोग, सद्भाव उदारता, ईमानदारी, संयम, सदाचार, आस्तिकता आदि सद्भावो एवं सद्दविचारों का स्वयमेव आविर्भाव होने लगता है। यज्ञ कर्म के बाद श्रद्धालुओं को भोजन प्रसाद देकर विदाई किया गया। कार्यक्रम के सहयोग के रूप में प्रज्ञा मंडल, महिला मंडल, युवा मंडल व दिया के सदस्यों का प्रमुख योगदान रहा।

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