त्रेतायुग से ही सामान्य रूप से आयोजित होने वाले मेले से अलग और अनोखा है बक्सर का पंचकोसी मेला

Sonu sharma

गाजीपुर । जनपद की ठीक सीमा से सटे बिहार के बक्सर में हर साल पंचकोसी मेले का आयोजन होता है। पांच दिनों के भीतर देश भर से श्रद्धालु आते हैं। लिट्टी-चोखा बनाते हैं और भगवान श्रीराम का प्रसाद जानकर उसे खाते हैं। पंचकोसी मेला अपने आप में अद्भुत मेला है। पांच कोस की दूरी तय कर समाप्त होने वाले इस मेले की शुरुआत बक्सर से सटे अहिरौली से होती है। जहां माता अहिल्या का मंदिर है। दूसरे दिन नदांव, तीसरे दिन भभुअर, चौथे दिन बड़का नुआंव और पांचवे दिन बक्सर के चरित्रवन में मेला लगता है। पांच दिनों में श्रद्धालु अलग-अलग तरह का पकवान बनाकर भगवान को समर्पित करते हैं। पांचवें दिन विधिवत मेले का समापन होता है।इस मेले का भगवान राम से सीधा कनेक्शन है। वैसे तो लिट्टी-चोखा पूरे भोजपुर और बक्सर जिले का प्रिय व्यंजन है। लेकिन पंचकोसी मेले के दौरान इसकी महता बढ़ जाती है। कहा जाता है कि भगवान राम को पंचकोसी परिक्रमा करने के दौरान लिट्टी-चोखा से उनका स्वागत किया गया था। उसके बाद से यानि त्रेतायुग से लिट्टी-चोखा बनाने की परंपरा चली आ रही है। मार्गशीर्ष(अगहन) के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से आयोजित होने वाला ये मेला इस बार 20 नवंबर से शुरू हुआ है। समापन 24 नवंबर को चरित्रवन बक्सर में होगा।एक ऐसा मेला, जहां एक साथ उठती हजारों स्थान से आग की लपटें, विश्व प्रसिद्ध पंचकोसी परिक्रमा के बारे में जानें इस मेले के पीछे कथा है कि भगवान राम विश्वामित्र मुनी के साथ सिद्धाश्रम आए थे। भगवान राम ने यज्ञ में व्यवधान पैदा करने वाली राक्षसी ताड़का एवं मारीच-सुबाहू को उन्होंने मारा था। इसके बाद इस सिद्ध क्षेत्र में रहने वाले पांच ऋषियों के आश्रम पर आशीर्वाद लेने चले गए। जिन पांच जगहों पर वे गए, वे पंचकोसी के मुख्य पड़ाव बनते गए ।

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