महामंडलेश्वर भवानी नन्दन यति का 28वां चातुर्मास संपन्न, पीठाधिपति बोले : सनातन संस्कृति की रक्षा हेतु धर्म संस्कृति से जुड़ना आवश्यक

Sonu sharma

गाजीपुर । सिद्धपीठ हथियाराम मठ के 26वें पीठाधिपति एवं जूना अखाड़ा के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी श्री भवानीनंदन यति महाराज के 28वें चातुर्मास महानुष्ठान की पूर्णाहुति बुधवार को वैदिक मंत्रोच्चार व हवन पूजन के साथ हुआ। श्रावण प्रतिपदा से शुरू होकर भाद्र पद पूर्णिमा तक चले इस अनुष्ठान की पूर्णाहुति में विद्वतजनों संग शिष्य श्रद्धालुओं ने हिस्सेदारी निभाई।उल्लेखनीय है कि अध्यात्म जगत में एक तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात करीब 900 वर्ष प्राचीन सिद्धपीठ हथियाराम मठ के 26वें पीठाधीश्वर स्वामी भवानी नन्दन यति महाराज ने सिद्धपीठ की गद्दी पर आसीन होने के साथ ही अपने गुरुजनों की प्रेरणा व उनके मार्ग का अनुसरण करते हुए चातुर्मास अनुष्ठान का संकल्प लिया था। इस क्रम में देश के 12 ज्योतिर्लिंगों सहित नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में प्रवास कर वह अपना चातुर्मास महानुष्ठान संपादित करते हुए बीते कुछ वर्षों से सिद्धपीठ हथियाराम मठ से ही चातुर्मास कर रहे हैं। इस कड़ी में चातुर्मास महानुष्ठान की पूर्णाहुति पर प्रमुख यजमान शिवानन्द सिंह झुन्ना और महामंडलेश्वर के साथ ही अन्य गणमान्यजनों ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच हवन कुंड में आहूति दिया। महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनंदन यति ने अपने ब्रह्मलीन गुरु महामंडलेश्वर स्वामी बालकृष्ण यति महाराज के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलित व माल्यार्पण किया। समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि बीएचयू के पूर्व कुलपति एवं उप्र. उच्च शिक्षा के अध्यक्ष प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना से कार्य करने का आह्वान किया ताकि भारत एक बार फिर विश्वगुरु बन सके। उन्होंने गुरु महाराज और सिद्धपीठ की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि गुरु ही वह शक्ति है जो हमें आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। सिद्धपीठ की धरती अत्यंत ही पावन और वंदनीय है, जहां की अधिष्ठात्री देवी मां के दर्शन पूजन से समस्त कष्टों का निवारण होता है। उन्होंने महाभारत का प्रसंग उद्धरित करते हुए कहा कि समाज की ज्यादा क्षति सज्जनों के चुप रहने से हुई है, दुष्टों की दुष्टता से नहीं। महाराज श्री ने सज्जन शक्ति के जागरण का कार्य शुरु किया है। कहा कि भारत अधिकार प्रधान नहीं कर्तव्य प्रधान देश रहा है। कहा कि भारत बना रहे यह चिंता हम सबको करनी चाहिए। युवा परिपक्व नहीं होने के कारण असत्य के साथ खड़ा हो जाता है, जिन्हें सत्य का मार्ग दिखाना अभिवावकों और बड़े बुजुर्गों की जिम्मेदारी है।उन्होंने कहा कि कर्तव्यों का बोध हो तो अधिकार की चिंता करने की जरूरत नहीं। कर्तव्य बोध पर आधारित समाज खड़ा करना होगा। महिलाओं की महत्ता बताते हुए कहा कि जब कोई पुरुष दुविधा में पड़ता है तो महिला ही उसे दुविधा से निकालने का काम करती है। देश को महान बनाना है तो महिलाओं को आगे आना होगा।पीठाधीश्वर स्वामी भवानी नन्दन यति ने आशीर्वचन देते हुए चातुर्मास अनुष्ठान की महत्ता और सनातन संस्कृति को दृष्टिगत रखते हुए धर्म संस्कृति से जुड़ने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि सभी धर्मों से बढ़कर मानवता का धर्म है, जिसका पालन करें। कहा कि शरीर में आत्मा तो मंदिर में परमात्मा के रूप में जाने जाते हैं। बताया कि समय के साथ चलना सर्वोत्तम है। संत कभी मरता नहीं है, संत तो ब्रह्मलीन होते हैं। जरूरत पड़ने पर मैं शास्त्र के साथ-साथ शस्त्र लेकर सीमा पर जाने को भी तैयार हूं।यह सिद्धपीठ सिद्ध संतों की तपस्थली है, जहां मां के दरबार में सच्चे मन से सर झुकाने के बाद किसी को दुनिया में किसी और के सामने सर झुकाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मनचासीन अतिथियों, पत्र प्रतिनिधियों एवं अन्य विशिष्टजनों को अंगवस्त्रम आदि देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर आचार्य शंभूनाथ पाठक, मानस मर्मज्ञ डा. मंगला सिंह, सोमनाथ सिंह, देवरहा बाबा बिरनो, रजनीश राय, स्वामी सत्यानंद यति, आचार्य पंडित मनीष कुमार पांडेय, वरुणदेव सिह, प्रवेश पटेल, डॉ. रत्नाकर त्रिपाठी, संतोष यादव, अमिता दूबे, मंजू सिंह, सविता सिंह, सुरेन्द्र सिंह, रमेश सिंह पप्पू, अरविंद कुमार सहित तमाम शिक्षाविद, संत और गणमान्यजन उपस्थित रहे। अंत में पुण्य लाभ की कामना संग लोगों ने भंडारा से महाप्रसाद ग्रहण किया।

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