महावीर धाम पर रामकथा में सीता बिबाह प्रसंग सुन भावविभोर हुए श्रोता

Sonu sharma

गाजीपुर । भांवरकोल क्षेत्र के शेरपुर खुर्द महावीर धाम पर चल रहे रामकथा में श्रीराम एवं सीता विवाह ,विदाई का वर्णन किया गया। आजमगढ़ से पधारे रामकथा वाचक ललित गिरी शास्त्री जी महाराज ने कहा कि सीता- श्रीराम का विवाह भक्ति और भगवान का मिलन है। सीता भक्ति है और श्री राम भगवान। विवाह महोत्सव की बड़े ही मनमोहक अंदाज में कथा का वाचन किया। सीता- राम विवाह की मनमोहक मिथिला की विवाह गीत की प्रस्तुति भी दी। ललित गिरी शास्त्री महाराज ने कथा के दौरान धनुष यज्ञ पर विस्तार से कथा सुनाई। कहा जब भगवान श्री राम के हाथों से धनुष टूटा तो किसी ने धनुष से पूछा की सीता राम के विवाह मे सभी खुश हैं। पर तुम तो बहुत दुःखी होगे क्यो की तुम्हे भगवान श्री राम ने तोड़‌कर धरती पर डाला है। उस टूटे हुए धनुष ने जवाब दिया, मैं सबसे ज्यादा खुश हूँ क्योंकि हम जब तक जुड़े थे तब तक दुसरे को तोड़ने का काम करते थे। देखो आज हम टूटकर भी सीता और राम को जोड़ने का काम कर रहे हैं, आज मेरे टूटने के कारण ही सीता जी और श्रीरामचन्द्र जी जुड़कर एक हो जाएंगे। फिर मेरा सौभाग्य तो देखो हम टूटकर भी भगवान श्री राम के चरणों में पड़े हुए है। धनुष यज्ञ के बाद कथा वाचक ने अयोध्या से मिथिला के लिए महाराज दशरथ का सभी बारातियों के साथ प्रस्थान से लेकर मिथिला पहुचने तक की कथा का भी बहुत ही रोचक एवं सरस अंदाज मे वर्णन किया। सीता की विदाई प्रसंग कहते हुए श्री शास्त्री जी ने कहा कि सीता की विदाई पर राजा जनक और रानी सुनैना आंसू नहीं रोक पा रहे थे। सीता विदाई का वर्णन सुनकर श्रद्धालुओं की आंख भर गई।जनक सीता की विदाई के क्षणों में एक खम्बे का सहारा लेकर रो रहे थे। रानी सुनैना सीता से मिली और कहती है कि बेटी सास -ससुर ,गुरु की सेवा करना।पति की आज्ञा का पालन करते हुए उनके पद चिन्हों पर चलना ,शिव पार्वती के दाम्पत्य जीवन को आदर्श मान कर संस्करों की रक्षा करना। बेटी को विदा के समय पत्थर दिल पिता की भी आँखे नम हो जाती है। इस लिए प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य है। कि गुरुदेव भगवान के चरणों में बैठकर भक्ति का ज्ञान प्राप्त करे और गुरुदेव के बताये हुए भक्ति के मार्ग पर चल कर इसी जीवन में शरीर से भगवान को प्राप्त करें। तभी चौरासी लाख योनियों में भटकने से छुटकारा होगा। यही मानव जीवन को प्राप्त करने का परम लाभ भी है।

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