विनम्रता एवं बुद्धिमत्ता से ही परोपकार कर राम के प्रिय थे हनुमान – ललित नारायण गिरी

Sonu sharma

गाजीपुर । भांवरकोल क्षेत्र के शेरपुर खुर्द गांव स्थित महाबली नाम पर चल रहे रामकथा में कथावाचक पंडित ललित नारायण गिरी ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदासजी सुंदरकांड को लिपिबद्ध करते समय हनुमानजी के गुणों पर विचार कर रहे थे। वे जिस गुण का सोचते, वहीं हनुमानजी में भरपूर दिखाई देता। इसलिए उन्होंने हनुमानजी की स्तुति करते समय उन्हें ‘सकल गुण निधानं’ कहा है। यह सम्मान पूरे संस्कृत साहित्य में केवल बजरंगबली को मिला है। हालांकि ईश्वर के समस्त रूप अपने आप में पूर्ण हैं लेकिन हनुमानजी एकमात्र ऐसे स्वरूप हैं, जो किसी भी कार्य में कभी भी असफल नहीं हुए। एक स्वामी को अपने सेवक से काम में सफलता की गारंटी के अलावा और चाहिए भी क्या? पवनपुत्र अपने कई गुणों के कारण प्रभु श्रीराम को अत्यंत प्रिय रहे। ये गुण हमारे जीवन में भी बड़ा बदलाव लाने की शक्ति रखते हैं। तमाम बाधाओं को पार कर लंका पहुंचना, माता सीता को अपने राम दूत होने का विश्वास दिलाना, लंका को जलाकर भस्म कर देना- उनके इन गुणों का बखान करते हैं। * सूक्ष्म रूप धरी सियंहि दिखावा,विकट रूप धरी लंक जरावा’कपि के वचन सप्रेम सुनि ,उपजा मन बिस्वास,जाना मन क्रम बचन यह , कृपासिंधु कर दास’।
उनका सामना सुरसा नामक राक्षसी से हुआ, जो समुद्र के ऊपर से निकलने वाले को खाने के लिए कुख्यात थी। हनुमानजी ने जब सुरसा से बचने के लिए अपने शरीर का विस्तार करना शुरू कर दिया, तो प्रत्युत्तर में सुरसा ने अपना मुंह और बड़ा कर दिया। इस पर हनुमानजी ने स्वयं को छोटा कर दिया और सुरसा के मुख से होकर बाहर आ गए। हनुमानजी की इस बुद्धिमत्ता से सुरसा संतुष्ट हो गईं और उसने हनुमानजी को आगे बढ़ने दिया। अर्थात केवल बल से ही जीता नहीं जा सकता बल्कि विनम्रता के साथ बुद्धिमत्ता से भी कई काम आसानी से किए जा सकते हैं।श्री राम कथा में श्री हनुमान जी का पावन पवित्र चरित्र श्री हनुमान जी की परोपकार के आगे 33 करोड़ देवता लक्ष्मण बंदर सुर नर मुनि सभी ऋणी श्री हनुमान जी की परोपकार में एक विशेषता मिलती है जिस किसी का उपकार किया उसे किसी तरह की अपेक्षा नहीं की इसीलिए आज शक्ति दुर्गा ने श्री हनुमान जी को अमृत तो प्रदान किया अजर अमर बन्ना की सूट हो करो बहुत रघुनायक हो और जितने उपकारी जीवन और नरमुनियों का है सब स्वार्थी उपकार करते हैं लेकिन श्री हनुमान जी के उपकार में परोपकार में स्वार्थ समाहित नहीं है।

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version