गाजीपुर। हिंदू धर्म में अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जिउत्पुत्रिका का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर माताएं चौबीस घंटे निर्जल व्रत करती हैं, जिससे उनके पुत्र दीर्घायु वायु तथा तथा निरोगी होते हैं। दिन भर व्रत रहने के बाद शाम के समय गंगा स्नान कर कच्चे धागे में प्रतीक के रुप में जिउतिया को संलग्न कर पूजन किया जाता है। इसके बाद इसे धारण किया जाता है।
जिस माता के जितने पुत्र होते हैं उतने प्रतीक जिउतिया का पूजन होता है। महिलाओं ने बुधवार को जीवित्पुत्रिका का कठिन व्रत रखा। निराजल रहकर पुत्र के मंगल और दीर्घायु होने की कामना की। 24 घंटे तक बिना अन्न-जल के रहने के बाद अगले दिन गुरुवार सुबह पूजन के बाद पारण किया जाएगा। शाम को मंदिरों और जलाशयों पर पूजन किया गया। फल और मिठाई का भोग लगाया गया। पूजन सामग्री खरीदने के लिए सुबह से ही बाजार में भीड़ रही। शाम के समय गंगा घाटों पर स्नान के लिए भीड़ उमड़ी। शहर के ददरीघाट, महादेव घाट, कलेक्टरघाट, सिकंदरपुर घाट आदि पर शाम तक भीड़ बनी रही। बाढ़ के पानी की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को काफी परेशानी हुई। घाटों के आस पास वाहनों की कतार लग गई थी।
कथा सुनाई… महाभारत काल से शुरू हुई परंपरा:- व्रती महिलाओं ने शाम को जिवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी। महाभारत काल से इस व्रत की परंपरा शुरू हुई है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से ही अश्वत्थामा से उत्तरा के गर्भ की रक्षा हुई थी और राजा परीक्षित को भी जीवनदान मिला था। इसी उम्मीद को लेकर महिलाएं जीवितपुत्रिका का व्रत रखती हैं। बंसीबाजार राधेनगर के पंडित श्रीनिवास चौबे ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में सूक्ष्म रूप में प्रविष्ट होकर अश्वत्थामा के अमोघ अस्व को अपने ऊपर ले लिया और उत्तरा के गर्भ में पल रहे गर्भ की रक्षा की। तभी से यह व्रत जीवितपुत्रिका के नाम से आस्था का केंद्र बन गया।