ग़ाज़ीपुर । दिलदारनगर कहते हैं कि अगर व्यक्ति में कुछ कर गुजरने का हौंसला,लगन और जुनून हो तो बुलंदी जरूर एक न एक दिन क़दम चुमेगी! इतिहास और कुछ नहीं बल्कि समाज और सभ्यताओं की स्मृति है!! स्मृति और कुछ नहीं बल्कि भग्नावशेषों में छिपा दास्तान है, जिसे इतिहास को जानने और समझने के लिए पुराने कलाकृतियांऔर अवशेषों को सुरक्षित रखना बेहद जरूरी होता है। इसी तरह के काम को अंजाम दे रहे हैं ग़ाज़ीपुर दिलदारनगर के रहने वाले कुँअर नसीम रज़ा जिनके पास संग्रह के बहुत सारे दूर्लभ सामान उपलब्ध है॔। इन्हीं सामानों में से 100 वर्षों के प्राचीन से लेकर वर्तमान तक के ईटों का अनोखा संग्रह उपलब्ध है। जो आने वाली पीढ़ियों के लिए और रिसर्च करने वाले स्कॉलर्स के लिए मिल का पत्थर साबित होगा। कुँअर नसीम रज़ा के संग्रहालय में संग्रहित मुग़लकालीन दस्तावेज़ात, पाण्डुलिपियाँ, फ़रमान, देश-विदेश के सिक्के-नोटों तथा किताबों का संग्रह है। इसके अलावा 100 वर्षों के हज़ारों शादी के कार्ड, 786 अंकित सामान एवं प्राचीन पुरातात्विक महत्व के पुरावशेषों के साथ ही प्राचीन काल से वर्तमान तक के ईंटो का दुर्लभ संग्रह मौजूद है। इन्हीं ईटों में 1896 ईस्वी से 1996 ईस्वी तक के वर्षवार सर्वाधिक 72 ईटों का अनूठा संग्रह कर डाला है।भारतीय ईंट पर सन् अंकित होने का संक्षिप्त इतिहास बताते चलें कि भारत में ईटों पर चिन्ह या निशान, सन्, दिनांक, वर्ष, व्यक्तिगत नाम अंकित करने की प्रथा उन्नीसवीं सदी में ब्रिटिश शासन काल के दौरान आरम्भ होती दिखाई देती है, जो 20वीं सदी के 90 के दशक तक लगतार जारी रहा है। 21वीं सदी में ईटों पर तिथि का अंकन लगभग समाप्त हो चुके हैं। अब केवल चिन्ह, निशान, व्यक्तिगत नाम, मार्का देखे जा रहे हैं, दिनांकित वर्षवार ईंट बनना, तैयार करना लगभग समाप्त हो चुका है।
भारतीय ईंटों का 1896 से 1996 तक के सर्वाधिक वर्षवार 72 ईंट का संग्रह ऐसे में सन्, दिनांक अंकित दुर्लभ ईंट को शोध करने हेतु कुँअर नसीम रज़ा ने वर्षवार ईंट का संग्रह करने का बेड़ा उठाया। इसके लिए इन्होंने भारत के विभिन्न राज्यों तथा विभिन्न प्राचीन शहरों अथवा प्राचीन ऐतिहासिक इमारतो, खंडहरों, पुरानी गलियों तथा दरगाहों, कब्रिस्तानों से वर्षवार ईंटों को एकत्रित करने में सफलता प्राप्त कर रहे हैं। इनके द्वारा सुरक्षित ईंट पर लिखे ईस्वी सन, हिजरी सन् तथा फसली वर्ष जिसमें हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी आदि भाषाओं में लिखी ईंट प्राप्त हुई है। सर्वाधिक ऐतिहासिक महत्व की वर्षवार टेराकोटा ईंट के अनोखे एवं दुर्लभ संग्रह में पिछले 128 वर्ष पुरानी तथा 100 वर्ष में सर्वाधिक 72 ईंट के दूर्लभ, सर्वश्रेष्ठ संग्रह करने पर ग़ाज़ीपुर के मुहम्मद नसीम रज़ा ख़ाँ का नाम सर्वेक्षण के उपरांत 27 मई को पुष्टि करते हुए इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड-2024 में दर्ज किया गया तथा राष्ट्रीय एवं उच्च स्तरीय सम्मान-पत्र से नवाजा गया। दिनांकित और वर्षवार ईंट शोधकर्ताओं, इतिहासकारों और भविष्य की पीढ़ियों के लिए ऐतिहासिक दृष्टिकोण में सबसे महत्वपूर्ण संग्रहों में से एक है। शेष वर्षवार चिन्हित ईंट की तलाश जारी है। ताकि देश-विदेश में उपलब्ध दिनांकित वर्षवार ईंट को एकत्र कर एक स्थान पर संग्रहित किया जा सके।भारत के एकमात्र ऐतिहासिक, दूर्लभ, वर्षवार ईंट के संग्रहकर्ता कुँअर नसीम रज़ा खाँ को एक बॉक्स में सम्मान-पत्र, पेन, बैज, गाड़ी स्टीकर तथा पहचान पत्र के साथ ही इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड-2024 की प्रकाशित पुस्तक डाक के माध्यम से शुक्रवार को प्राप्त हुआ।सम्मान पत्र आदि प्राप्त होते ही स्थानीय दिलदारनगर, कमसार-व-बार क्षेत्र, तहसील सेवराई, ज़मानियां, जनपद गाजीपुर सहित काशी क्षेत्र में हर्ष व्याप्त हो गया।इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड-2024 में दूसरी बार दर्ज हुआ कुँअर नसीम रज़ा का नाम एक व्यक्ति द्वारा वर्षवार एकत्र की गई अधिकतम टेराकोटा ईंट के संग्रह से भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में एकमात्र इस अनूठे एवं दुर्लभ संग्रहकर्ता की पहचान कुँअर नसीम रज़ा ने बनाई है।बताते चले कि पिछले अप्रैल माह में कुँअर मुहम्मद नसीम रज़ा ख़ाँ को संग्रह के क्षेत्र में पहली बार “118 वर्ष पुरानी भारतीय उर्दू भाषा की मतदाता सूची संग्रह” को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड-2024 में दर्ज किया गया था। वहीं उपरोक्त ” एक व्यक्ति द्वारा संग्रहित भारतीय वर्षवार टेराकोटा ईंट” के संग्रह के लिए दूसरी बार नाम दर्ज हुआ है। कुँअर नसीम रज़ा के इस महान उपलब्धि से जनपद ग़ाज़ीपुर का मान भारतीय पटल पर सर्वोच्च स्थान स्थापित किया है। इसके लिए ढ़ेर सारी शुभकामनाओं सहित बधाई के पात्र हैं।