गाजीपुर । साहित्य चेतना समाज के तत्वावधान में ‘चेतना-प्रवाह’ कार्यक्रम के अन्तर्गत नगर के चन्दन नगर काॅलोनी-स्थित,वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ.रामबदन राय (सेवानिवृत्त प्रोफेसर,खरडीहा डिग्री काॅलेज, गाजीपुर) के आवास पर सरस काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया।अध्यक्षता बापू इण्टर कॉलेज सादात के सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य डाॅ.रामबदन सिंह ने की एवं संचालन सुपरिचित नवगीतकार डाॅ.अक्षय पाण्डेय ने किया। मंचीय औपचारिकताओं के पश्चात् आगंतुक कविगण एवं अतिथियों का संस्था के संस्थापक अमरनाथ तिवारी ‘अमर’ ने वाचिक स्वागत किया।गोष्ठी का शुभारंभ डॉ.अक्षय पाण्डेय की वाणी-वंदना से हुआ।तदुपरान्त साहित्य चेतना समाज के संस्थापक अमरनाथ तिवारी ‘अमर’ ने चेतना-प्रवाह कार्यक्रम के मूल उद्देश्य पर विशद प्रकाश डाला। काव्यपाठ के क्रम में कवि हरिशंकर पाण्डेय ने अपना भोजपुरी गीत “अवते पतोहिया चली गइली विदेशवा/बूढ़ा-बूढ़ी झनखत बाड़ें बइठि के दुअरिया राम/एगो सम इया रहे घरवा भरल रहे/हर घर खाली अब त नाहीं तकवइया राम” प्रस्तुत कर अतीव प्रशंसित रहे। वरिष्ठ हास्य-व्यंग्यकार विजय कुमार मधुरेश ने “नागिनों ने सपेरों से दोस्ती कर ली/रहजनों ने रहबरों से दोस्ती कर ली/कैसे काम जनता का होगा दफ़्तरों में/अब दलालों ने अफसरों से दोस्ती कर ली” सुनाकर ख़ूब वाहवाही लूटी। ओज के कवि दिनेशचन्द्र शर्मा ने अपनी कविता “धर्म को चुनौती देना आसान नहीं/धर्म-कर्म के नाम पर लड़ाना खिलवाड़ नहीं/सियासत में भागीदारी करने वालों/भारत के धर्मग्रंथों को चुनौती देकर/सबको मूर्ख बनाना आसान नहीं” सुनाकर ख़ूब तालियाॅं अर्जित की।युवा नवगीतकार डाॅ.अक्षय पाण्डेय ने परिवार में वृद्धों की स्थिति को दर्शाता अपना ‘अप्रासंगिक होने लगे पिता’ शीर्षक नवगीत “ऑंख बचाकर आना-जाना/रिश्तों का कतराना/बूढ़ी ऑंखें देख रहीं हैं /बदला हुआ ज़माना/घर में होकर भी घर में ही
खोने लगे पिता/धीरे-धीरे अप्रासंगिक होने लगे पिता” सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते हुए ताली बजाने के लिए विवश कर दिया। नगर के ख्यात ग़ज़लगो कुमार नागेश ने अपनी ग़ज़ल “है कहाॅं मंज़िल हमारी/दिल परीशाॅं आज़ है/रास्ते भी गुम हुए हैं/दिल परीशाॅं आज़ है” सुनाकर श्रोताओं की खूब तालियाॅं अर्जित की। नगर के वरिष्ठ व्यंग्य-कवि अमरनाथ तिवारी अमर ने अपनी व्यंग्य-कविताऍं सुनाकर श्रोताओं को आह्लादित कर दिया। वरिष्ठ कथाकार-कवि डॉ.रामबदन राय ने अपना शृंगारिक गीत “प्यार घट सकता है/प्यार बढ़ सकता है/
किसी मुकाम पर जाकर/ये ठहर सकता है”
प्रस्तुत कर श्रोताओं की अकूत तालियाॅं अर्जित की। इसी क्रम में संस्था के संगठन सचिव प्रभाकर त्रिपाठी की सांगीतिक अनुगीत की प्रस्तुति ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।अन्त में अध्यक्षीय उद्बोधन में डा.रामबदन सिंह ने साहित्य चेतना समाज के द्वारा किए गए कार्यों की भूरिश: प्रशंसा की।
इस सरस काव्यगोष्ठी में प्रमुख रूप से जयप्रकाश दूबे, डॉ. अजय राय, सतीश राय, राघवेन्द्र ओझा, अर्चना राय, प्रीति राय आदि उपस्थित रहे। अन्त में संस्था के संगठन सचिव प्रभाकर त्रिपाठी ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।
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